National Leprosy Council, WARDHA
Tribal Patients
Dr. Dilip examining poor adiwasi santhaal man and Dr. Dilip examining a poor adiwasi uraon woman.
Dr. DIlip treating patients under lantern
Between 1952 to 1966 as there was no electricity in pirpainti Dr Dillip used to examine patients and dispense medicines in the evening in night with the help of kerosene lamp.
Caring elephant
बरसात के दिनों मै डॉ दिलीप जिस हाथी पर बैठ कर मरीजों के घर पर जाकर उनका इलाज करते थे अचानक वह हाथी बीमार हो गया फोटो में डॉ दिलीप बीमार हाथी का इलाज करते दिखाई दे रहे है। हाथी के पीठ पर छः साल के बेटी रागनी सौक से बैठी है।
During monsoon season when Dr. Dilip used to move villages on elephant back to treat needy patients. Once the elephant fell sick and Dr. Dilip (can be seen in photo above) himself treated the elephant and his 6 year old daughter Ragni is enjoying elephant ride.
Visiting patients on Elephant back
बारिश के दिनों मै पीरपैंती प्रखंड के कच्ची रास्ते पर जल जमाव की वजह से डॉ दिलीप को गांवो- गावों
जाकर रोगियों का इलाज घोड़े पर सवार होकर शंभव नहीं था। इशलिये यदुनंदन यादव की हाथी मंगवा
कर गांवो- गावों रोगियों के इलाज के लिए हाथी पर सवार होकर जाते थे।
During monsoon season, owing to heavy rainfall as there was no pukka road, stagnant water were found on kuchcha roads, hence, it was not possible to move to villages on horseback. Mr. Yadunandan Yadav’s elephant was used to visit the needy patients and Dr. Dilip used to visit needy patients (for their treatment) on elephant back. Dr. Dilip is known to be only doctor in the country who has used this type of transportation to move around different villages during different climates.
Visiting villages on horseback
As there was no electricity, no pukka road in Pirapinti from 1952 to 1968, Dr. Dilip had to go different villages to treat patients on horseback and a person accompanying him with a bag of medicines to be dispensed to the ailing patients. In 19th century doctors in U.K. & U.S.A use to go in different villages on horse back along with a bag of medicine to treat patients at there home.
As there was no electricity, no pukka road in Pirapinti from 1952 to 1968, Dr. Dilip had to go different villages to treat patients on horseback. In 19th century doctors in U.K. & U.S.A use to go to different villages on horse back along with a bag of medicine to treat patients at there home.
These are the feet of poor Savitri Devi who was suffering from Talipas Equinovarus (born with inverted feet). She came to Dr. Dilip for free treatment of cough and fever. Dr. Dilip told her parents apart from treating Savitri’s cough and fever, he will treat Savitri’s feet also. The treatment of feet will be operation and repeated plasters. After 9 months of treatment, Savitri’s feet became normal and she was full of joy. Dr. Dilip helped Savitri in getting a suitable boy for marriage for her. Savitri now is leading a normal married life with her husband and children.
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Large Lipoma over the scalp of a village women.
In 1950s, one old village women came for treatment of cough and fever. Dr. Dilip while examining the lady located a large tumour on the head of the women. Dr. Dilip requested the old women to get rid of this tumour by operation. The old women replied “as it is given by the almighty God, I wish this tumour should live with me till my death”. After many requests, at the last the lady finally thought to get rid of this tumour through operation. The operation was performed by Dr. Dilip. The whole village got astonished to see the lady without tumour on her head.
घरवालों की जुबानी
मैं महेंद्र भगत उर्फ़ बच्चू भगत, पिता स्व० रामपरिखा भगत निवासी बाराहाट (बिहार) का एक गल्ले का व्यापारी हूँ। ५० साल पहले की बात है, मेरी दादी माँ पीरपैंती डॉ दिलीप कुमार सिंह के अस्पताल में इलाज़ के लिए गयी थी। जांच के दौरान डॉ दिलीप बाबू ने दादी माँ के सिर के ऊपर करीब डेढ़ किलो का एक मांसपिंड देखा। जो मेरे दादी माँ के सिर के अंडर से बिलकुल लगा हुआ था। हमलोग जब भी दादी माँ से पूछते थे और उस मांसपिंड को छु के देखते थे और दादी माँ से पूछते थे भगवान् ने सबको एक सिर दिया है आपको भगवान् ने दो सिर कैसे दे दिया, दादी माँ कहती थी भगवान् बहुत बड़े हैं यह उनकी इच्छा है वह किसी को कुछ भी दे सकते हैं। हमलोग फिर पूछते थे दादी माँ इसमें दर्द तो नहीं होता है यह अच्छा नहीं लगता है, इसको कटवा दो। दादी माँ कहती थी इसको कौन कटेगा। इसको कटवाने के बाद मैं नहीं जी पाऊँगी। डॉक्टर साहब ने सर्दी, खांसी, बुखार की दवा दे दिया और कहा सिर के ऊपर यह डेढ़ किलो का मांसपिंड से आपको क्या कोई उलझन महसूस नहीं होती है? मेरी दादी ने कहा यह तो मुझे क्या औरों को भी देखने में बुरा लगता होगा, लेकिन मै क्या करूँ। गांव, घर, परिवार सभी यह कहते हैं यह भगवानी है और दवा से गलने वाला नहीं है। सिर का ऑपरेशन एक खतरनाक ऑपरेशन है, इसलिए क्या करूँ। भगवान् ने यह दुःख दे दिया है खेप रही हूँ। डॉक्टर साहब ने कहा आपके सिर का ऑपरेशन मै कर दूंगा। आपका सिर और चेहरा जब आईने में देखेंगे तो अच्छा लगेगा। डॉक्टर साहब की बातों से दादी माँ को भरोसा हो गया और दादी माँ ऑपरेशन के लिए तैयार हो गयी। एक दिन दादी माँ के सिर का ऑपरेशन हुआ और डेढ़ किलो का नारियल जैसा मांसपिंड ऑपरेशन से दादी माँ के सिर से निकाल कर हटा दिया गया। टंका काटने के बाद दादी माँ के चेहरा सुन्दर और अच्छा दिखने लगा। दादी माँ भी खुश देखने लगी। बाराहाट बाजार में दादी माँ को देखने लोग आये और सबों ने कहा सचमुच में यह एक बड़ा ऑपरेशन था। बाराहाट बाजार में इस ऑपरेशन की चर्चा कुछ दिनों तक होती रही। मेरी माँ भी बार-बार यह कहती थी डॉक्टर साहब ने मेरे लिए एक बड़ा काम कर दिया उनको भगवान् अच्च्कि तरह रखें।
घरवालों की जुबानी “मै राम प्रताप द्विवेदी पीरपैंती बाजार का रहने वाला हूँ। मेरे पिताजी स्व० श्रीराम तपस्या दुबे एक सात्विक विचार के व्यक्ति थे। बचपन में ही हमलोग पिताजी के पीठ पर मांसपिंड का एक बड़ा गोला देखते थे। जिसकी वजह से पिताजी का बनयान कुर्ता पहनने में कठिनाई थी। डॉ दिलीप कुमार सिंह का पीरपैंती बाजार मरीज़ों को देखने आते रहते थे। एक दिन उन्होंने पिताजी से कहा पंडित जी चलिए आपके पीठ के गोले का ऑपरेशन कर निकाल देता हूँ। गोला निकल जायेगा और आप बनियान कुर्ता आराम से पहन पाएंगे। पिताजी को पहले तोह डर लगा बाद में तैयार होकर डॉक्टर साहब के पास गए। डॉक्टर साहब ने क्लोरोफॉर्म सुंघा कर पिताजी को बेहोश कर दिया फिर ऑपरेशन कर गोला निकाल दिया। मांस का गोला करीब 10 किलो का था। ऑपरेशन के बाद पिताजी होश में आये तो उन्होंने बताया मेरे शरीर से जो 10 किलो का मांसपिंड निकला है उसे मुझे दे दिया जाये। मेरी इच्छा है मै इसे अपनी पत्नी को दिखाऊंगा और दिखाने के बाद इस मांसपिंड को गंगा में प्रवाहित कर दूंगा। दुबे जी की इच्छा के मुताबिक मांसपिंड को कपडे में लपेट कर सुरक्षित एक जगह रख दिया गया। दुसरे दिन जब दुबे जी चलने फिरने लायक हो गए तो 10 किलो का मांसपिंड उन्हें दे दिया गया और उसे लेकर पीरपैंती बाजार अपने घर पहुंचे। पिताजी के घर पहुंचते ही पचासों लोग उनसे मिलने और उस मांसपिंड को देखने आये। पिताजी ने मांसपिंड को मेरी माँ को दिखाया। उस मांसपिंड को मेरी माँ देख कर कुछ देर के लिए बेहोश हो गयी थी। नौवे दिन पिताजी को लेकर मै डॉक्टर साहब के पास पंहुचा। डॉक्टर साहब ने घाव के सारे टाँके काटे और खाने को कुछ दवाइयां दी। पिताजी जब बिलकुल ठीक हो गए तो उन्होंने 500 रुपया नगद और जनेऊ के साथ मुझे डॉक्टर साहब के पास भेजा। डॉक्टर साहब ने 500 रुपया नहीं लिया पर जनेऊ रख लिया। बीस पचीस दिनों में पिताजी बिलकुल स्वस्थ हो गए और हल्का मह्सूस करने लगे, आसानी से बनियान कुर्ता सब पहनने लगे। मुझे आज भी याद है डॉक्टर साहब इस तरह के निशुल्क कार्यक्रम करते रहते थे और उन्हें इसमें आनंद मिलता था।”
घरवालों की जुबानी
मैं मिथिलेश कुमार पाण्डेय, ग्राम मेहरपुर, प्रखण्ड पीरपैंती जिला भागलपुर का रहने वाला हूँ। आज मै एक पचपन साल पुरानी कहानी को बताना चाहता हूँ। मेरे दादा जी श्री भारत पाण्डेय अजीब दर्दनाक बीमारी से ग्रसित थे। उनके पोथे की बीमारी (स्क्रोटल टूमॉर) काफी बड़ा करीब पंद्रह किलो का हो गया था। जिसकी वजह से उनका चलना फिरना यहां तक की खड़ा होना मुश्किल हो गया था इसलिए दादाजी ज्यादातर लेटे ही रहते थे। उनको चलते फिरते बाहर निकलते गांव के लोगों ने नहीं देखा था। एक बार मेरे दादाजी श्री भारत पाण्डेय सर्दी खांसी बुखार से पीड़ित हो गए। घर लोग दादाजी को खटोली में टांग कर शेरमारी पीरपैंती डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह के पास इलाज़ के लिए ले गए साथ में मेरे चाचा श्री सुरेंदर पाण्डेय भी गए थे। दो तीन दिनों की दवा से दादाजी ठीक हो गए तब डॉक्टर दिलीप बाबू ने दादाजी को सलाह दिया की इस स्क्रोटल टूमॉर का आप ऑपरेशन करा लीजिये। इसकी वजन से आप न खड़ा हो पाते हैं ना चल फिर पाते हैं। ऑपरेशन से यह स्क्रोटल टूमॉर आप के शरीर से अलग हो जायेगा, आप हल्के हो जायेंगे और आप घर के अंदर घर के बाहर आसानी से चलने फिरने लगेंगे। कुछ देर के लिए दादाजी सोच में पड़ गए फिर उन्होंने हिम्मत बाँधी और ऑपरेशन के लिए तैयार हो गए। दादाजी पंद्रह दिनों के लिए अस्पताल में रह गए। उनके साथ मेरे चाचा सुरेंदर पाण्डेय भी रहे। पंद्रह दिनों के बाद दादाजी ऑपरेशन कराकर जब घर लौटे तो घर तथा गाँव में खुशहाली छा गयी। दादाजी घर के बाहर घूमने फिरने लगे। गांव के दो चार लोग सुबह शाम आने लगे तथा अगल बगल के गाँव से रिश्तेदार लोग भी दादाजी को देखने, मिलने तथा ऑपरेशन की कहाँ सुनने आने लगे। पहले तो वजनी स्क्रोटल टूमॉर की वजह से चलना फिरना तो खैर बहुत ही मुश्किल था। घर के लोग कहते हैं कभी कभी दादाजी चार गज के कपडे में स्क्रोटल टूमॉर को लपेट कर कपड़े को गर्दन में बाँध लेते थे और गर्दन की ताकत से पंद्रह किलो वजन स्क्रोटल टूमॉर को तौलकर खड़े हो जाते थे, दो चार कदम इधर उधर चलकर थक कर फिर बैठ जाते थे। इस तरह दर्दनाक तथा मजबूरी वाली ज़िन्दगी दादाजी ने कई सालों तक बिताई। आज हमलोग उनकी उस तरह की हालत के बारे में जब सुनते हैं तो कलेजा काँप उठता है। गांव के लोग तथा तथा घर के लोग बताते हैं की दादाजी के उस ज़माने में इतने बड़े वजनी पोथे का ऑपरेशन को भागलपुर में भी कोई डॉक्टर करने को तैयार नहीं हुआ था और दादाजी हार थक कर एक दुखी जीवन बिता रहे थे। मैं, परिवार के सबलोग तथा श्री सुरेंदर पाण्डेय जी मेरे चाचाजी जो ऑपरेशन के समय थे, डॉक्टर दिलीप सिंह के इस उपकार के लिए हमलोग सदा ऋणी रहेंगे। मुझे ख़ुशी है मेरी यह कहानी डॉक्टर साहब की किताब बीती यादें में छपने वाली है।
Past days
In the picture below, Student’s union of Darbhanga Medical College of 1946, Dr. Dilip was General Secretary of Students Union and he standing behind English Principal Col. Dr. Curran.
As a student of Patna Medical College from 1948 to 1952, Dr. Dilip was associated with a british judge Justice Shierer (with whom we can see below in picture). As Justice Shierer was renowned British Lawyer and Indian Law was guided by British Law, Justice Shierer was requested to stay in India for few years after Indian Independence in 1947.
As there was no electricity, no pukka road in Pirapinti from 1952 to 1968, Dr. Dilip had to go different villages to treat patients on horseback and a person accompanying him with a bag of medicines to be dispensed to the ailing patients. In 19centeury doctors in U.K. & U.S.A use to go in different villages on horse back along with a bag of medicine to treat patients at there home.
Cancer awareness, detection and treatment programme
From time to time cancer awareness, detection and treatment programme for poor villagers were done. Two important camps were managed by Mahavir Cancer Hospital, Patna in 2011 and the other by Indian Cancer Society, Kolkata in 2019.